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मुलायम के मित्र का टिकट काटकर अखिलेश ने जयंत को भेजा था राज्यसभा, दो साल में टूट गई दोस्ती

लखनऊ। सपा के दिग्गज नेता और मुलायम सिंह यादव के दोस्त रेवती रमण सिंह का टिकट काटकर रालोद नेता जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने वाले अखिलेश यादव को झटका लगा है। उनकी दोस्ती दो साल भी नहीं चल पाई। सोमवार को रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर दी। जून २०२२ में सपा के खाते में राज्यसभा की तीन सीटें आईं थीं। उस दौरान रेवती रमण सिंह, डिंपल यादव समेत कई नेताओं के नाम की चर्चा थी। हालांकि अखिलेश यादव ने किसी की नहीं सुनी। उन्होंने नई-नई दोस्ती में रालोद नेता जयंत चौधरी और निर्दल प्रत्याशी कपिल सिब्बल का समर्थन कर दिया। जिससे पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई। तीन जून २०२२ के बाद दो साल पूरे नहीं हुए तब तक रालोद ने अखिलेश यादव का साथ छोड़ दिया।

अखिलेश यादव का साथ छोड़ रहे पुराने नेता और कार्यकर्ता
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुलायम सिंह एक परिपक्व नेता थे। वह हमेशा कार्यकर्ताओं, पुराने नेताओं का सम्मान करते थे। वह रिश्ते बनाने से ज्यादा निभाने पर विश्वास रखते थे लेकिन अखिलेश यादव में यह गुण नहीं हैं। वह सामने दिख रही व्यवस्था को ही अपना मान लेते हैं। यही कारण है कि उनके कई पुराने नेताओं ने सपा का साथ छोड़ दिया। मैनपुर के दिग्गज नेता मनोज यादव, बृजेश यादव, प्रदीप तिवारी, पीडी तिवारी, ऋचा सिंह, रोली तिवारी, बलिया के नीरज शेखर, पूर्व सांसद रवि वर्मा आदि ऐसे नाम हैं, जो पार्टी छोड़ चुके हैं या बगावत कर रहे हैं।

सिमटती जा रही है पार्टी
मुलायम सिंह यादव दोस्ती निभाना जानते थे। इसी वजह से लोग उनके लिए जूझने को तैयार रहते थे। अखिलेश यादव के हाथ कमान आने के बाद सपा पूरी तरह से सिमटती जा रही है। जानकारों का मानना है कि आने वाले समय में यदि पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं मिला तो स्थिति और खराब होगी। उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र समेत अन्य प्रदेशों में कभी सपा के एक से तीन विधायक हुआ करते थे। कुछ सालों में संख्या सिमट गई है।

शिवपाल को नहीं मिल रही तवज्जो
सपा में भले ही शिवपाल यादव की वापसी हो गई है लेकिन उन्हें मुलायम सिंह के समय का नेता मानने को कोई तैयार नहीं है। आज पार्टी में अखिलेश ही सबकुछ हैं। यही कारण है कि शिवपाल यादव भी अपना दायरा सीमित रख रहे हैं। जिससे कार्यकर्ताओं में मायूसी है। लोगों का कहना है कि अखिलेश यादव भले नेता प्रतिपक्ष हैं लेकिन वह भाजपा का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। यदि शिवपाल यादव नेता प्रतिपक्ष होते तो जरूर स्थिति बदली बदली नजर आती।

स्वामी प्रसाद के बिगड़े बोल के कारण सपा से टूट रही अगड़ी जातियां
समाजवादी पार्टी से एमएलसी और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयान लगातार सुर्खियों में रहते हैं। वह कभी भगवान पर तो कभी हिंदू समाज पर टिप्पणी करते रहते हैं। अखिलेश यादव भी उन्हें कुछ नहीं कहते हैं। यही कारण है सपा से जुड़ी अगड़ी जातियों के नेता धीरे-धीरे दूसरे दलों की ओर रूख कर चुके हैं।